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क्रांति की मशाल थे वीर सावरकर- कैलाश मंथन

क्रांति की मशाल थे वीर सावरकर- कैलाश मंथन

 तेज, त्याग, तप और तर्क थी विनायक की पहचान, सावरकर की ही प्रेरणा से नेताजी ने बनाई थी आजाद हिंद फौज

वीर सवारकर जयंती पर हिउस की चिंतन संगोष्ठी आयोजित


गुना। तेज, त्याग, तप और तर्क ही वीर विनायक दामदोर सावरकर की पहचान थी। वीर सावरकर की ही प्रेरणा से नेताजी सुभाषचंद बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी। वीर सावरकर को ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। समुन्द्र के रास्ते उन्हें भारत लाया जा रहा था। वीर सावरकर का साहस था कि वो समुंद्र में कूद कर भाग निकले। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में वो नाम, जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने सबसे कड़ी सजा दी। सजा काले पानी की, वो भी एक नहीं दो बार, यानी 50 वर्षों के लिए। पूरे इतिहास में इतनी लंबी सजा किसी भी स्वतन्त्रता सेनानी या क्रांतिकारी को नहीं दी गई। उक्त विचार विराट हिन्दू उत्सव समिति के तहत चिंतन हाउस सर्राफा बाजार में वीर सावरकर जयंती के मौके पर आयोजित  चिंतन संगोष्ठी में हिउस प्रमुख कैलाश मंथन ने व्यक्त किए। श्री मंथन ने कहा कि वीर सावरकर एक महान विचारक, साहित्यकार, इतिहासकार और समाज सुधारक थे। सावरकर ने अखंड भारत का सपना देखा। वे छुआ-छुत और जाति भेद के  घोर विरोधी थे। उनकी पुस्तक भारत का प्रथम स्वतंत्रता समर 1857 ने अंग्रेजों की जड़े हिला दी थी। अंग्रेजों के अंदर फिर से 1857 जैसी स्वन्त्रता संग्राम का डर समा गया। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने 1905 में स्वदेशी का नारा दे कर विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। सावकर ऐसे भारतीय थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी लंदन जा कर क्रांतिकारी आंदोलन को संगठित किया।

इस मौके पर श्री मंथन ने विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि उनका जन्म 28 मई, 1983 को नासिक जिले के भंगुर गांव में हुआ था। पिता का नाम दामोदर और माता का नाम राधा बाई था। विनायक तीन भाई थे और इनकी एक बहन थी, मैना। तीनों भाई गणेश, विनायक और नारायण क्रांतिकारी थे। सावरकर बचपन से ही क्रांति की मशाल मन में जला चुके थे। चापेकर बंधुओं के बलिदान और लोकमान्य तिलक के बाद देश में गुस्से का माहौल था। उसी समय विनायक भी क्रांति की ज्वाला में धधक उठे। 1901 में एडवर्ड सप्तम का राज्याभिषेक हुआ जिसके विरोध में सबसे पहले वीर सावरकर ने आंदोलन किया और ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति की मांग की। सावरकर ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास की और कानून की पढ़ाई करने  जून 1906 में लंदन आ गए। लंदन में सावरकर भारतीय छात्रों में राष्ट्रधर्म की अलख जगाने लगे। वहां वे क्रांतिकारियों की टोली बनाने लगे। सावरकर युवाओं के प्रेरणास्रोत बन गए। लंदन में ही उन्होंने 1857 के संग्राम की स्वर्ण जयंती मनाई। लंदन में ऐसा पहली बार था जब भारतीय छात्र जो लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे सड़कों पर वंदे मातरम का बिल्ला लगा कर निकले।

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