अष्टांग योग का मानव जीवन में महत्व:- योगाचार्य महेशपाल
अष्टांग योग का मानव जीवन में महत्व:- योगाचार्य महेशपाल
गुना -भारत सहित पूरे विश्व में हर साल की भांति इस साल भी बड़े उत्साह, उमंग और हर्षोल्लास के साथ 10वा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को ''स्वयं और समाज के लिए योग'' थीम के अनुसार लगभग 200 से भी अधिक देश अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने जा रहे हैं, योगाचार्य महेशपाल विस्तार पूर्वक बताते है कि आंतरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। इसलिए 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने के लिए चुना गया, 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को 'आंतरराष्ट्रीय योग दिवस' को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।भारत के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अन्दर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो किसी प्रस्तावित दिवस को संयुक्त राष्ट्र संघ में पारित करने के लिए सबसे कम समय था, उसके पश्चात 21 जून 2015 को सद्भाव और शांति के लिए योग थीम के साथ 192 देशों द्वारा प्रथम बार विश्व योग दिवस मनाया गया, महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को केंद्र में रखते हुए ''महिला सशक्तिकरण के लिए योग''एवं स्वयं और समाज के लिए योग।थीम इस साल 2024 के योग दिवस की थीम बनाई गई है जिससे हमारी मातृशक्ति ,बहन बेटियां शारीरिक ,मानसिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक रूप से सशक्त बन सकें और विभिन्न प्रकार के रोगों से अपने स्वयं का और अपने परिवार का बचाव करते हुए राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके, अष्टांग योग में जीवन के सामान्य व्यवहार से लेकर ध्यान एवं समाधि-सहित अध्यात्म की उच्चतम अवस्थाओं तक का अनुपम समावेश है।जो भी व्यक्ति अपने अस्तित्व की खोज में लगा है तथा जीवन के पूर्ण सत्य को परिचित होना चाहता है, उसे अष्टांग योग का अवश्य ही पालन करना चाहिए। यम और नियम अष्टांग योग के मूल आधार हैं।अष्टांग योग का उद्देश्य सही कार्यों, ध्यान, अनुशासन और व्यायाम की मदद से किसी व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा को उसकी बाहरी दुनिया की ऊर्जा के साथ जोड़ना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, व्यक्तियों को अष्टांग योग के "आठ अंगों" का अभ्यास करने की आवश्यकता है, जैसा कि महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में यह आठ अंगों का वर्णन किया है जिसमें यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान,समाधि मुख्य रूप से समाहित है 'यम' और 'नियम' वस्तुतः शील और तपस्या के द्योतक हैं। यम का अर्थ है संयम जो साधक के अंदर सामाजिक नैतिकता का विकास करता है, वही नियम द्वारा व्यक्तिगत नैतिकता का विकास होता है, आसन से तात्पर्य है स्थिर और सुख पूर्वक बैठने के प्रकार से (स्थिर सुखमासनम्) जो देहस्थिरता,शरीरिक नियंत्रण को साधता है।प्राणायाम प्राणस्थैर्य एवं मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्ति की साधना हैं, प्राणस्थैर्य और मन:स्थैर्य की मध्यवर्ती साधना का नाम 'प्रत्याहार', प्रत्याहार से इन्द्रियां वश में रहती हैं और उन पर पूर्ण विजय प्राप्त हो जाती है। देह के किसी अंग पर (हृदय में, नासिका के अग्रभाग पर) अथवा बाह्यपदार्थ पर (जैसे इष्टदेवता की मूर्ति आदि पर) चित्त को लगाना 'धारणा' कहलाता है, किसी एक स्थान पर या वस्तु पर निरन्तर मन स्थिर होना ही ध्यान है।ध्यान में सदृशवृत्ति का ही प्रवाह रहता है, ध्यान की परिपक्वावस्था का नाम ही समाधि है। यह चित्त की वह अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है, धारणा ध्यान समाधि का सामूहिक नाम 'संयम' है जिसे जीतने का फल है विवेक ख्याति का आलोक या प्रकाश। समाधि के बाद प्रज्ञा का उदय होता है और यही योग का अंतिम लक्ष्य और मोक्ष प्राप्ति का साधन है, इस प्रकार हमें हमारे जीवन में अष्टांग योग का पालन करते हुए दैनिक दिनचर्या में नित्य प्रतिदिन योग करते हुए योग अनुसार आहारचर्या का पालन करते हुए निरोग और स्वस्थ पूर्वक जीवन जीते हुए समाधि की ओर आगे बढ़ जाते हैं जिससे हमारे जीवन जीने का उद्देश्य पूरा होता है, आइये हम सब मिलकर योग से अपने आप को स्वस्थ बनाकर अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाए और जीवन को सफल बनाए,
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