हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति की पहचान-कैलाश मंथन
हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति की पहचान-कैलाश मंथन
विश्व हिन्दी दिवस पर हुई चिंतन गोष्ठी
भेंट की गई श्री मद भगवद् गीता की प्रतियां
गुना। हिन्दी मात्र एक भाषा नहीं, अपितु हमारी पहचान है। हमारी संस्कृति है। अपनी मातृ-भाषा का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। जिन्हें अपनी मातृ-भाषा पर अधिकार होता है वे ही दूसरी भाषा को भी समझ सकते हैं। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान वैश्विक स्तर पर आवश्यक है, लेकिन अपनी राष्ट्र भाषा का त्याग कर उन्नति नहीं प्राप्त की जा सकती। चिंतन मंच के तहत विश्व हिन्दी दिवस पर चिंतन हाउस सर्राफा बाजार में आयोजित बौद्धिक गोष्ठी में कार्यक्रम संयोजक कैलाश मंथन ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान की एकता के लिए मात्र हिन्दी ही एक ऐसी भाषा है जो राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांध सकती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी स्वर एवं व्यंजनों का सूक्ष्मीकरण मात्र हिन्दी में ही पाया जाता है।श्री मंथन ने कहा कि प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं 14 सितंबर 1949 को संविधान में हिन्दी भाषा को स्वीकार किया गया था। अंग्रेजी शब्दकोष के अनेकों शब्द हिन्दी से ही लिए गए हैं। जैसे लाख, करोड़ आदि महत्वपूर्ण शब्दों को भी हिन्दी शब्दकोष से ही लिया गया है। हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और हमें हमेशा हिन्दी भाषा का प्रयोग करते समय गर्व सहसूस करना चाहिए। श्री मंथन ने कहा कि अंग्रेजी के सर्वाधिक चलन के बावजूद आज हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा के रूप में उभरी है। हिन्दी का भविष्य उज्जवल है। यह निकट भविष्य में वैश्विक स्तर पर स्थापित होगी। अंग्रेजी में कार्य करने वाली इंटरनेट कंपनियों को भी हिन्दी में कार्य करने सोचना पड़ेगा। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की पूजा से प्रारंभ हुआ। इस मौके पर गोष्ठी में मौजूद वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। वहीं शहर के प्रमुख लोगों को एवं साहित्यकारों को श्रीमद् भागवत गीता की प्रतियां भेंट की गई।
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